Wednesday, March 24, 2010



ओस की बूँद पड़ती होगी जब पत्ते पर
पत्ते को भी सिहरन सी उठती होगी
अपने कपकपाते आँचल में उसको
सहेज कर रखने की कोशिश झलकती होगी

उस बूँद को भी सुकून मिलता होगा
हिफासत से सिमटी बैठी जो है
सोचती होगी
यह पत्ते का बेइन्तहा प्यार ही तो है

इतने से वक़्त में
ख्वाहिशे तो उड़ान भरती होगी
बंधेज की चुन्नरी में जैसे
सपने तो वो पिरोती होगी

ओस की उस बूँद को
शायद पत्ते से मोहब्बत होगी
उस पत्ते पर गिरने से पहले
उसकी कुछ चाहत रही होगी

सम्हलते सम्हलते, समेट कर खुद को
दिल पत्ते के नाम कर दिया होगा
रंग बिरंगी कहानियाँ बनाई होंगी
और इश्क परवान चढ़ गया होगा

पर पत्ते ने तो इतना सोचा ना था
वो तो अपनी ही धुन में था
असहाय बूँद को देख कर
सिर्फ उसका दिल ही पसीजा था

बूँद को पनाह दी उसने
मगर चाह तो कुछ और थी
जाने अनजाने में में ही उसने
बूँद को जीने की एक वजह दी

पर कुदरत का तो नियम यही है
बूँद को भी अहसास है
जो उसके पास है, वो उसका नहीं है
वक़्त के गाल पर जैसे, छलका एक आंसू है